गजल
ई, हर-कोदारि के रखलकै
खोँइठी ओदारि के रखलकै
येत’ हम छिरपिटाईते छी
पसेनमा गारि, के रखलकै
नै पेन्हबे ग’ कोट, कमीज
धोतीके फारि, के रखलकै
डक’ लगैय’ – छींक उठैय’
तमाकू झारि, के रखलकै
छूटैछै, छन् – छन् परनमा
हाक पारि, के रखलकै
– विरेन्द्र कुमार सिंह